यथार्थ उपयोग
मधुरम समय, देहरादून । लाहौर से एक दिन पं0 शिवनारायण अग्निहोत्री आते हुए स्वामी दयानन्द की भेंट के लिए कुछ पुष्प लाये । स्वामी जी ने कहा ‘अग्निहोत्री जी यह आपने अच्छा नहीं किया । प्रकृति ने इन पुष्पों को जितने दिन सुगन्ध फैलाने के लिए रचा था, आपने उससे पूर्व ही उनको तोड़ दिया । अब वे शीघ्र ही सड़कर सुगन्ध के स्थान पर दुर्गन्ध फैलायेंगे । वृक्ष पर लगे रहते तो उससे बहुत मनुष्यों को लाभ होता और स्वयं समय पर गिरते तो उत्तम खाद का काम देते । ‘प्रकृति ईश्वर की सुन्दर कृति है । इसे बिगाडो मत, इसका यथार्थ उपयोग लो’
लेखक तथा संकलनकर्ताः स्वामी ब्रहमानन्द सरस्वती ‘वेद भिक्षु’
रिपोर्ट - अनूप रतूड़ी